यह सिर्फ लाल पत्थर से बनी कोई इमारत नहीं है | इसका बन्ना इतिहास में एक बड़ी घटना थी और इसने अपने निर्माण से लेकर अब तक ऐसी ऐसी घटनाओं को देखा है जिन्होंने इतिहास का रुख बदल दिया |
यह है दिल्ली का लाल किला |
दिल्ली का वह हिस्सा जो पुरानी दिल्ली कहा जाता है वही इतिहास के पन्नों को पलटता संभालता लाल किला आज भीड़भाड़ वाले इलाके से घिरा है, शांत है लेकिन खामोश नहीं | सन 1627 में जब मुगल बादशाह शाहजहां तक पर बैठा तो देश में अमन चैन था बादशाह को बड़ी–बड़ी इमारतें बनवाने का शौक था उसकी राजधानी आगरा में थी, लेकिन आगरा की गर्मी उसे रास नहीं आई उसने तय किया कि मुगल साम्राज्य की राजधानी दिल्ली हो
काफी सोच–विचार के बाद तालकटोरा पार्क और रायसीना पहाड़ी का चुनाव नए शहर के लिए किया गया, लेकिन बादशाह के दो नामी कारीगर उस्ताद हमीद और उस्ताद अहमद ने यमुना के किनारे खुले मैदान को किले के निर्माण के लिए बिल्कुल सही बताया |
सन 1639 में लाल किले की नींव रखी गई | 9 सालों तक कारीगरों, शिल्पकारओ और मजदूरों की कड़ी मेहनत के बाद लाल किला बनकर तैयार हुआ | इसी किले के सामने शहर शाहजहानाबाद बसाया गया जिसे अब दिल्ली काआ जाता है आलीशान लाल किले के तैयार होने के समय बादशाह काबुल में थे | खबर मिलते ही बादशाह दिल्ली के लिए रवाना हुए | नजूमीयो और ज्योतिषियों के निकाले गए मुहूर्त के समय पर बादशाह यमुना के सामने दरियाई दरवाजे से किले में दाखिल हुए | खाई को पार करने के लिए लकड़ी का पुल था |
इस मौके पर लाल किले में शानदार समारोह हुआ, जिस की सजावट कमाल की थी | आगरा के किले से दुगने आकार की लाल किले की दीवारें यमुना की ओर 60 फुट ऊंची है और सामने की दीवार 110 फुट ऊंची है | इसमें 75 फुट दीवार खंदक की सतह से ऊपर है और बाकी खंदक की सतह तक है | किले के पीछे यानी पूर्व में यमुना नदी केले के साथ बहती थी और तीन तरफ खंदक थी | इनमें रंग बिरंगी मछलियां थी, खाई के साथ–साथ हरे भरे बाग थे, लेकिन ब्रिटिश शासन काल में यह गायब हो गए |
लालकिले और सलीमगढ़ किले को जोड़ता एक पुल है, लाल किले से सटा हुआ सलीमगढ़ किला है जिसका निर्माण शेरशाह सूरी के बेटे सलीम शाह सूरी ने सन 1546 करवाया था | सलीम गढ़ किले का इस्तेमाल शाही कैद खाने के रूप में होता था
लाल किले की प्राचीर का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था किले को आढ़ देने के लिए उसने उसने यह दीवार बनवाई जिसे घुंघट वाली दीवार कहा जाने लगा | शाहजहां ने अपने कैद के दिनों में औरंगजेब को आगरा से लिखा था “कि मानो दीवार बनवा कर तुमने दुल्हन के चेहरे पर नकाब डाल दिया” | किले के दक्षिण में दिल्ली दरवाजा है जो जामा मस्जिद की तरफ है बादशाह इसी दरवाजे से नमाज पढ़ने जामा मस्जिद जाया करते थे | सन 1930 में लोड कर्जन ने इस दरवाजे के तीनों और पत्थर के हाथी खड़े करवा दिए | किले के 3 दरवाजे थे लेकिन लाहौरी दरवाजा मुख्य दरवाजा था | यह दरवाजा चांदनी चौक के ठीक सामने पड़ता है, यह दरवाजा पार करते ही छत्ता बाजार शुरू हो जाता है | इस छत्ते के दोनों और दुकानें हैं और ठीक बीचोबीच एक चौक है | किसी ज़माने में यहां हर तरह का समान दिखता था लेकिन आज यह सैलानियों के लिए एक मुख्य आकर्षण है | लाहौरी दरवाजे के छत्ते से निकल कर नजर पड़ती है नक्कारखाने की 2 मंजिला इमारत पर, बीच में एक चौक था जिसका सरोवर अब मैदान बन चुका है | चौकी के चारों और मनसबदार और सामंतों की मकान दफ्तर और बैठके थी जो अब धूल में मिल चुका है | चौक से जरा आगे बढ़ते ही नक्कारखाने का दरवाजा है, जिसे हथिया पोल कहते थे | कुछ कहते हैं कि इसका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि दरवाजे के दोनों और पत्थर के हाथी थे |
इस दरवाजे से आगे किसी को भी अपनी सवारी में बैठकर जाने की इजाजत नहीं थी सिर्फ शाही खानदान के सदस्यों को छोड़कर | नक्कारखाने में हर रोज पांच बार नौबत बजती थी | इतवार को सारा दिन नौबत बजती थी इसके अलावा बादशाह के जन्मदिन पर भी सारा दिन नौबत बजती थी |